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हिंदी , हिंग्लिश और हिंदी राष्ट्र !

 हिंदी , हिंग्लिश और हिंदी राष्ट्र  !

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10 जनवरी 2023 ,विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

आज का ही वो दिन है जब सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप का हिन्दीमय होना तय है , आज ही वो दिन हैं जब हम फिर से हिंदी को अपने बोलचाल में अपनाने का प्रण लेंगे । हमारे नेतागण भी आज कहाँ पीछे रहने वाले हैं वो भी आज अपनी  हिन्दी  उर्फ हिंग्लिश मे हिंदी पर भाषण देकर अंग्रेजी में थैंक्यू कहकर निकल जाएंगे। पर खेर इसमे आप और  हम जैसे लोग भी शामिल हैं , जो कितना भी आज अपने हिन्दीप्रेमी होने का सबूत दे पर फिर भी अंदर ही अंदर हम खुद के सत्य से अच्छी तरह वाकिफ हैं । आप और मुझ जैसे ऐसे कितने और लोग होंगे जो रोज अंग्रेजी के नए नए शब्दों को सीखने में दिलचस्पी रखते हो पर हिंदी का कोई नया शब्द सीखे जमाना हो गया।  जैसे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहिये या विश्वविद्यालय समझ तो आप जायेगे ही में आज फिर एक बहुत ही अच्छा सन्देश घूमेगा की जिस देश मे हिंदी में बात करने के लिए दो दबाना पड़े उस देश के वासियों को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! तो चलिये कित्रिम सन्देशों से बाहर निकलकर हिंदी  बारे में कुछ जानते हैं,

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कुछ जानकारी ;
10 जनवरी 1975 का वो दिन था जब विश्व मे पहली बार हिंदी भाषा पर कोई सम्मेलन आयोजित किया गया हो। मध्यप्रदेश के नागपुर में  इसका आयोजन किया गया । हिंदी के भविष्य पर चर्चा हुई । ओर साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी मे उस ऐतिहासिक दिन के महत्व को याद करते हुए हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की थी। वैसे भारत का राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है 14 सितंबर 1949 को ही हिंदी को  राजभाषा का दर्जा दिया गया था। जिस दिन हिंदी को राजभाषा बनाने पर चर्चा हो रही थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उस चर्चा में एक बहुत महत्वपूर्ण मत दिया था उन्होंने कहा था कि कोई भी देश विदेशी भाषा जरिए महान नही बन सकता ।

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हिंग्लिश :
अब ये हिंग्लिश क्या है ?  क्या ये हिंदी भाषा का कोई नया रूप हैं। आज हम जिस भाषा का प्रयोग 
करते हैं क्या वो शुद्ध हिंदी हैं या कुछ और हैं चलिये एक उदाहरण लेकर इसपर बात करते हैं वो 
तुम्हारा रूम के बाहर वैट कर रही थी ! अब आप कहेंगे कि ये तो हिंदी हैं पर क्या ये शुद्ध हिंदी हैं
 क्या रूम और वैट हिंदी के शब्द है ? अब आप कहेंगे कि ये तो इंग्लिश हैं अब इतनी सी इंग्लिश तो 
जायज है ना । बस यही तो कहानी है हिंदी के बदलते रूप की जब हिंदी के वाक्य  में इंग्लिश शामिल
 कर दी जाए तो वो हिंग्लिश बन जाती हैं जैसे अगर आपका नाम कमल राज हैं तो आपको आगे 
चलकर कही अपना नाम लोटस राज भी सुनने को मिल सकता है तो ज्यादा चिंता करने की जरूरत

 नही हैं क्योंकि हमने कौन सा हिंदी में अपना परचम लहराया हैं तो बेझिझक आगे बढ़िए अपनी 
हिंगिस के साथ ।
जब अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को भारत की राजभाषा बनाया गया तो उसमें यह कहा गया कि संघ
 की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी । परन्तु इस अनुच्छेद के जैसे अभी अभी आजाद हुए
 देश पर एक आदेश के रूप में थोपा जाने लगा क्योकि गैर हिंदी राज्यों के लिए हिंदी एक सिरदर्द सा
 बन जाती इसलिए उन्होंने इसका विरोध किया। जिसके कारण इंग्लिश को भी राजभाषा का दर्जा 
और गैर हिंदी राज्यों की अपनी राजभाषा चुनने से हिंदी के बढ़ते  क्षेत्र को कम कर दिया गया।
दिया गया । यह व्यवस्था केवल 15 सालो के लिए ही कि गई थी । परन्तु इन 15 सालो में सरकारें गैर
 हिंदी राज्यों में हिंदी का प्रचार प्रसार और प्रभाव छोड़ने में नाकाम रही जिसके फलस्वरूप 1967
 को भाषा संसोधन नियम के तहत हिंदी के साथ साथ इंग्लिश को भी राजकार्यों में अनिवार्य कर दिया
 गया जिससे हिंदी पर असर तो पड़ना स्वभाविक था।
क्योंकि राज्यों के लिए अपनी क्षेत्रीय भाषाओं की भी रक्षा करनी थी ।

हिंदी राष्ट्र ?
एक देश एक भाषा का नारा तो आपने कई बार सुना होगा । पर ये नारा असल मे हैं कितना जायज 
भारत जैसी विभिन्नता शायद ही विश्व में कही देखी जाती हो ! हर राज्य की अपनी क्षेत्रीय भाषा वहां
 की राजभाषा हैं। और फिर एक नवनिर्मित  विभिनताओ से भरे राष्ट्र पर कोई भाषा थोपना वहां के 
लोगों के बीच भाषाई सँघर्ष  को जन्म देने जैसा है


क्यो नही बन पाई हिंदी शिक्षा की भाषा ?
अंग्रेजों के भारत आगमन के साथ अंग्रेजी ने भी भारत मे अपना पैर रखा जिसके फलस्वरूप यहाँ के
 शिक्षित वर्ग ने अंग्रेजी भाषा को आसानी से सीख लिया । अंग्रेजों के द्वारा शुरू किये गए शिक्षण
 संस्थाओं में इंग्लिश का प्रभाव होना तो लाज़मी थी जिसके कारण इंग्लिश अपना क्षेत्र बढ़ाती गई । 
और फिर आजादी के बाद गैर हिंदी भाषी राज्यो ने हिंदी के विरोध ने इसके शिक्षण संस्थानों में वंचित
 जैसा कर दिया। और इंग्लिश में तकनीक ने पूरी दुनिया के सामने  अपने महत्व का परचम लहराया हैं
 आज के  तकनीकी युग मे हिंदी की जगह जैसे नाम मात्र ही है । हम में से कितने लोग ने मोबाइल
मोबाइल  पर नजर दौड़ा कर देखिये ।पर माफ करियेगा मैं आपसे सही  जबाब की उमीद नहीं रख 
सकती। पर इन सब के लिए आप हम और  हमारी सरकारों की हिंदी को लेकर नीतियां शामिल है 
 अगर तकनीकी युग के शुरुआती चरणों मे अगर सरकार ने तकनीकी शिक्षा को हिंदी में भी उपलब्ध
 करवाया होता। या हिंदी को अग्रणी भाषा के रूप में शामिल किया होता तो शायद आज आपके और मेरे

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