मिर्ज़ा ग़ालिब की 20 बेहतरीन शायरी ; Mirza Ghalib Shayri and Gazal in 2 lines with hd images
1. " कोई उम्मीद बर नहीं आती , कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती" - मिर्ज़ा ग़ालिब
2. "मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती "- मिर्ज़ा ग़ालिब
3. "दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ.".- मिर्ज़ा ग़ालिब
4. "दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ-" मिर्ज़ा ग़ालिब
5." डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले".- मिर्ज़ा ग़ालिब
6."हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.-" मिर्ज़ा ग़ालिब
7." दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है "- मिर्ज़ा ग़ालिब
8." क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन-" मिर्ज़ा ग़ालिब
9." रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है "- मिर्ज़ा ग़ालिब
10" उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है "- मिर्ज़ा ग़ालिब
11." मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले "- मिर्ज़ा ग़ालिब
12." ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
तिरे वा'दे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता "- मिर्ज़ा ग़ालिब
13." न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता-" मिर्ज़ा ग़ालिब
14." उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है"- मिर्ज़ा ग़ालिब
15." मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले."- मिर्ज़ा ग़ालिब
16."भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले.-" मिर्ज़ा ग़ालिब
17." निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले..".- मिर्ज़ा ग़ालिब
18."डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले"..- मिर्ज़ा ग़ालिब
19."हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले."..मिर्ज़ा ग़ालिब
20" 'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ"- मिर्ज़ा ग़ालिब
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